श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
काम्यसाधनम् – तृतीयपटलः – भाग – १
चक्राकार कमलकर्णिका पर आसीन, कालाग्नि के सदृश प्रभा वाले, चार भुजाओं वाले, विशाल मुख्वाले, चार चक्र धारण करने वाले हरि शीहनुमान् – ध्यान में लीन, त्रिनेत्रधारी, उग्र विग्रह वाले समस्त दोष और शोक को दूर करने वाले का धान करें | अब मैं उत्तम साधन वाले मन्त्र को कहता हूं, जिसके ज्ञानमात्र से मनुष्य साक्षात् सूर्य सदृश तेजस्वी होता है | सतयुग में एक हजार त्रेता में तीन हजार द्वापर में पांच हजार और कलियुग में दश ह्जार जप करें | यह मंत्र पर्वत शिखर नदी के तीर पर गुरु के सान्निध्य में, गोशाला में वृन्दावन में विशेश फल प्रदान करता है | इन्द्रियों को वश में करके गुरु की आज्ञा से इस मंत्र का जप करें | इसकी सिध्दि से सभी काम्य कर्म सिध्द हो जाता है |
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देवता रूप शी गुरु की पूर्व कृपा को प्राप्त करके एक सौ आठ बार मन्त्र जप करके बारह दिन तक जितेन्द्रिय बने रहें | मंत्र की पुरश्चर्या महती सिद्दि प्रदान करती है | तदनन्तर मैं सामान्यतः कार्य कर्म का उपदेश करता हूं |अट्टाईस प्रकार वाली इस हनुअम्द्विध्या का प्रातः मध्याह्न, सायं रात्रि सदैव जप करें | वह विपत्ति से मुक्त, पाप से रहित राजसभा विद्वदसभा में सदैव विजयी होकर – शत्रुओं की दुस्तर भी शृंखला को स्तब्ध कर देता है रोकता है दीर्घायुष्य, आरोग्य और उत्तम स्थिरलक्ष्मी – महान तेज और दुर्लभ यश प्राप्त करता है | बुद्धिमान जन बुधवार को एक सौ आठ बार मन्त्र का जप करें | गोघृत से बारह बर अग्नि में आहुति दे | बालकों को पुआ खिलाने और प्रसन्न करने से छः महिने में स्थिर महालक्ष्मि का लाभ होता है | राजा स्त्री और पुरुश को वश में करें, सभी शत्रुओं को जीतकर सभी मनोरथ को प्राप्त करता है | कारागृह में जप करें तो बिद्धिमान तीन दिन में मुक्त हो जात है | इसमें संशय नहीं है |
माहाराज भय होने पर दुर्गम स्थान में प्राण संकट में पडने पर एक सौ आठ बार मन्त्र जपने से राजा की निकटता प्राप्त होती है | मरण पर्यात राजा निरन्तर सेवक होकर शीघ्र वश में हो जाता है | स्वर्ण-मण्डित श्वेत वस्त्र अलंकरणादि से गुरु की पूजा करके ग्रहण करें | शिखा में कंठ में दाहिना और बायें हाथ में या कमर में धारण करके नेत्र को छूते हुए तीन बार जपें | मन से श्रीगुरु को प्रणाम करें, पुनः वायुपुत्र हनुमान जी को प्रणाम करें |
हे मुनि राजसभा अथवा विव्द्तसभा जहां-जहां पुरुष जाता है, वहां-वहां सम्मान विजय और लाभ को प्राप्त करता है | नित्य ही ऐसा आचरण करने से शत्रुओं की वाणी और मन स्तंभित होता है | पग-पग पर आयुवृद्धि एवं वह सभी मनोरथ को प्राप्त करता है | वैशाख मास कृष्णपक्ष दशमी बुधवार तथा वैघृति योगसे संयुक्त श्री हनुमान जी का जन्म दिवस है |
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हे मुनिश्रेष्ट! उस अवसर पर श्रीराम के प्रिय महाबली हनुमान की पूजा करके वस्त्रालंकरण व्दारा यत्नपूर्वक गुरु को संतुष्ट कर श्री हनुमान् जी की इस विध्या (मंत्र) का एक सौ आठ बार जप करके – गाय के सुंदर घी से अग्नि से बारह बार आहुति देने पर यह महाविध्या शीघ्र सिद्ध होती है, इसमें संशय नहीं है | इस हनुमद् विध्या का दश हजार जप और दस हजार आहुति से शत्रुओं का संपूर्ण देश भी निश्चय ही भस्म कर सकता है | लंका दहन करने वाले का ध्यान करते हुये आदरपूर्वक दीर्घकाल तक जप करके खीर से अग्नि में एक हजार आहुति दें | उसी दिन शत्रु का पूरा देश अग्नि से भस्म हो जाता है | द्रोण पर्वत पर स्थित औशध व्दारा लक्ष्मण की प्राण रक्षा करने वाले का – ध्यान करके हजार बार इसके जपने से दीर्घायुष्य को प्राप्त करता है | दिन अथवा रात्रि में अठ्ठाईस बार जप करें |
हे महायोगी! श्री गुरु यदि संतुष्ट हों तो हर महीने अंजनीनंदन स्वप्न में दर्शन देता हैं | इस श्रीरामदूत के प्रसन्न हो जाने पर तिलोक में कुछ भी असाध्य नहीं है | ब्राम्ह मुहूर्त में उठकर आदरपूर्वक श्रीगुरु का स्मरण करें | अठ्ठाईस प्रकार की विध्या का यदि सै बार जप करे तो स्थिर लक्ष्मी और अपार यश प्राप्त करता है | विजय, राज सम्मान, सौभाग्य, उत्तम शोभा, आयु, आरोग्य और मनोरथों को प्राप्त करता है | ब्राम्ह मुहूर्त में जो एक सौ आठ बार इसका जप करता है, उसको श्री हनुमान् जी का प्रति पक्ष में दर्शन देते हैं | एक वर्ष अथवा तीन वर्ष में निश्चय ही धनधान्य से युक्त होकर हाथी घोडा और रयादि प्राप्त करता है | आंजनेय की कृपा से शत्रुसमूह को जीतकर देखकर ही विश, ज्वर नाश करता है | देखने पर ही दुर्लभ राजकन्या और नारी आकर्षित हो जाती है | दो महीनें में ही वह देखकर राजा को भी आकर्षिक कर लेता है | तीन वर्ष में आकाश में विचरण करने योग्य हो जाता है | जरा-मरण से रहित होकर निश्चय ही शतायु होता है |
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