श्री राम जय राम जय जय राम
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम् श्रीराम राम भरताग्रज राम राम |
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम् श्रीराम राम शरनं भव राम राम ||
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे |
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ||
श्री हनुमते नमः
प्रस्तावना
श्री हनुमान जी धर्म्प्राण भारतवर्ष के आबाल वृध्द देवता हैं | हम सभी इनको स्वामिभक्ति के प्रतीक के रूप में जानते है | हम इनके विषय में जो भी जानते है उसका स्तोत्र है रामायण | यह महाकाव्य़ आदिकवि वाल्मीक के व्दारा रचा गया है | और इसी रामायण को आधार बनाकर बाद के समय में अनेक भाषाओं में इसका रुपान्तरण किया गया है | इस महाकाव्य में रघुकुल के राजा एवं दशरथ के पुत्र श्रीराम का जीवनवृत्त का वर्णन दिया हुआ है |
किन्त भारतवर्ष में अधिकतर लोगों को इस रामभक्त हनुमान के अन्य आयामों के विषय में जानकारी ही नहीं है | भगवान हनुमान के जीवन के आयाम अनन्त है | वे त्रेता में श्रीराम के साथ थे | व्दापर में भी थे | और इस कलि में भी है | और आगे भी रहेंगे | और आने वाले कल्प में वही ब्रह्मा अर्थात सृष्टिकर्ता होंगे | इस तरह अनन्त आयामों से युक्त हनुमान जी के अनेक आयामों का वर्णन महर्षि पराशर की ‘पराशसंहिता’ में उपलब्ध है |
पराशसंहिता महर्षि पराशर के व्दारा लिखी गयी है | यह पराशर एवं मैत्रेय का संवादरूप है | यह ग्रन्थ किसी समय में दक्षिणभारत में प्रचलन में था | किन्तु कालवश यह लुप्त हो गया है और कुछ लोगों के घर तक सीमित हो गया | यह अनगिनत वर्षों से ताड के पत्तों के ऊपर लिखा पडा है और इसके भिन्न-भिन्न भाग विभिन्न प्राप्तों में उपलब्ध हुआ है | इन सभी को बहुत प्रयास से डा. अन्नदानं चिदम्बरशास्त्री ने एकतत्रित किया और इसको देवनागरी लिपी में मुद्रित कराया |
श्री शास्त्रि ने इस पराशर संहिता का संग्रह और सम्पादन जीवन का लक्ष्य बनाया और लगभग तीन दशक तक इस मिशन को पूरा करने के लिये प्रयास किया | इस महान ग्रन्थ को प्रथमबार नागरीलिपी में प्रकाशन कराने का श्रेय भी शास्त्रि को ही प्राप्त होता है | श्री शास्त्रि आन्ध्रप्रदेश के प्रकाश जनपद के तिम्मसमुद्रं नामक गांव में स्थित संस्कृत विध्यालय में अध्यापक है |
इस ग्रन्थ में क्या है?
इस ग्रन्थ में भगवान हनुमान के जीवन के अतिरिक्त हनुमान से सम्बन्धित मन्त्रशास्त्र का अदभुत विचार प्रस्तुत है | इस कलियुग में मानव जीवन को कष्टों से राहत के सन्दर्भ में महर्षि मैत्रेय के व्दारा पूछे जाने पर महर्षि पराशर हनुमान के महत्व का वर्णन करते है और यही विषय का मुख्य आधार है | सप्तपुटीय हनुमत् मन्त्रात्मकविध्या की उपासनाविधी और हनुमव्दिध्या का महत्व मुख्य रूप से वर्णित किया गया है | भगवान हनुमान को सपने में देखने की विधी, हनुमत्व्रत का महत्व, सूर्यप्रकाश का सुवर्चला में प्रवेश, हनुमध्यन्त्र, हनुमतभक्ति का प्रभाव और हनुमान की भक्तसुलभता, तेरह हनुमत पीठों का इतिहास, गन्धमादन पर्वत पर हनुमान का वास (ठहरना), ऊट के ऊपर भगवान का संचार, भगवान के व्दारा अपने भक्तों को सुरक्षा प्रदान करने की या गलत करने वालों को दण्डित करने की विधी, शत्रुओं का संहार करके मनोकामनाओं को पूरा करने वाले हनुमत माला यन्त्र के बारे में वर्णित है |
हनुमगुपासना के लिये उपयुक्त समय, स्थान, भंगिमा, फूल फल पत्रों का वर्णन, हनुमान का शालिग्राम, कालरा और प्लेग जैसे महामारी को रोकने में भगवान की शक्ती के बारे में भी विस्तृत वर्णन उपलब्ध है | एक पटल में विशेषरूप से संगीत और उसमें भी भगवान के व्दारा निर्मित ‘गुण्डक्रिया’ राग का वर्णन है | इस प्रकार इस ग्रन्थ में भगवान की सम्पूर्ण जीवनी और सभी यन्त्र मन्त्र तन्त्र का पूर्ण विवरण प्राप्त है | इस ग्रन्थ में आंजनेय के तिरुमला के निकट अंजनाद्रि में जन्म होने का आधार दिया हुआ है | मुख्यरूप से यह ग्रन्थ हनुमान के जन्मस्थान जन्मदिन आदि विषयों में प्रचलित आशंकाओं का समाधान करता है |
श्री शास्त्रि को प्रेरण
श्री शास्त्रि के गुरु है महान हनुमदुपासक ब्रह्मश्री पालपर्ति सुब्बावधानुलु जिहोंने इन्हें इस कार्य में नियुक्त करने के साथ साथ इस ग्रन्थ का कुछ अंश प्रदान किया | गुरुजी श्री शाश्त्रि को कठिनतर होने के बावजूद सम्पूर्णग्रन्थ संग्रह करने का आदेश दिया था |
I want detail books about shree hanuman Bhagwan in hindi please provide me.or link about it in hindi