श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
श्री पराशरसंहिता – काम्यसाधनम् – तृतीयपटलः – भाग – २
अपने पुत्र को आहत देखकर वायुदेवता ने कुपित होकर वायु संचार को रोक दिया, इससे संपूर्ण जगत मृतप्राय हो गया| तब ब्रह्मा, विष्णु सहित स्वर्गाधिप इन्द्राद्रि देवताओं ने जाकर हजारों वरदान दिया, यह वही वायुनन्दन हैं| महावीर सभी कामनाओं से परिपूर्ण हैं अतः अमावास्या को अंजनीनन्दन की पूजा करके| विजयी संसार के स्वामी के फल-पुष्प उपाहरादि से पूजित करके 108 बार जप करके घी से बारह आहुति करें| गुरु की यत्नपूर्वक पूजा करके गुरु-दक्षिणा देकर मन्त्र की सिद्दि को प्राप्त करता है| यहां औचित्यि का विचार नहीं करना चाहिए|
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बुध्दिमान महावीर हनुमान से मार्गशीर्ष (अगहन) शुक्ल त्रयोदशी को जानकात्मजा जगन्माता देवी जानकी को देखा – तब उन्होंनें उन्हें वरदान दिया, जो तुम्हारी पूजा करेगा उसके समस्त दुख की निवृत्ति एवं संपदा सहित सभी मनोरथ प्राप्त करता है, इसमें सन्देह नहीं है अतः उस दिन जगतप्रभु वायुपुत्र की पूजा करके – गुरु की आज्ञा लेकर मन्त्र का तीन सै बार जप करें| यह उसका मन्त्र सिद्ध ही हो जाता है| यहां विचार का अवसर नहीं है| आदरपूर्वक अट्टाईस दिन तक दिन रात दो बार नित्य जप करने से पुरुष अत्यन्त भाग्यशाली होता है|
स्वप्न में देवता को देखता है| देव दुर्लभ अन्य लोक में स्थित अभीष्ट को शीघ्र प्राप्त करता है| इसमें संशय नहीं है| 108 बार जप करके पुरुष रणक्षेत्र में जाता है| यह शत्रु को अस्त्र-शस्त्र से हीन, चेतना, शून्य विमूढ बनाकर जीत लेता है| मायावी सेना से त्र्स्त वह शत्रुसमूह को जीतकर विजय को निश्चित ही प्राप्त करता है| यत्नपूर्वक रविवार को सफेद गुंजा की जड को उखाडकर – सुवर्ण से मण्डित श्वेतगुंजा के मूल स मुद्रिका बनाकर शेष बचे हुए गुंजामूल को इस मन्त्र स पांच बार – अभिमन्त्रित करके नित्य ही ताम्बूल के साथ भक्षण किये जाने पर लोग वशीभूत हो जाता हैं| शुभ दिन शुभ लग्न में यत्नपूर्वक गुरु की पूजा करके अथवा व्रतों में एक दिन विशेष रूप से – पंचमुखी हनुमान जी की सिंहासनेष्वरी विध्या को गुरु के सान्निध्य से प्राप्त करके शुभ मुद्रिका को ग्रहण करें| उस मुद्रिका को धारण करके इस महाविध्या का एक सै आठ या अट्टईस बार नित्य जप करें| इसकी विपत्तियां विनष्ट होती हैं| संसार, संसारी लोग, राजा और स्त्री अदभुदत रूप से वश में हो जाते हैं|
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जीवन भर संदेह नहीं होता| सभी संपदा प्राप्त होती है| सर्वत्र विजयी होकर सभी शत्रुओं को जीतकर – महान उत्तम ऐश्वर्य को प्राप्त करता है| हनुमान जी की कृपा से निरन्तर विजयी होता है| ग्रहणकाल में स्पर्श से लेकर मोक्ष तक आदरपूर्वक इस महामन्त्र का जप करें और उसका दशांश हवन करें| उसका दशांश तर्पन करें| बारह बालकों को भोजन करावें| मन्त्र सिध्द होने पर सदैह लक्ष्मी, कीर्ति और भाग्य का खजाना प्राप्त होता है| स्वर्ण मण्डित श्वेतगुंजा मूल निर्मित मुद्रिका को सदैव हाथ में धारण करके श्रीगुरु की कृपा से विध्या प्राप्त करके – जो जितेन्द्रिय जमीन पर सोकर ब्रह्माचर्य धारण करके छ्ः महीने तक जगतप्रभु की पूजा करके तीन सौ बार जप करे| वह साधकश्रेष्ठ निश्चित ही हनुमान जी को अपनी आंखों से देखता है| हनुमान जी उसको गुण-ऐश्वर्य से युक्ता अणिमादि सिद्धि प्रदान करते हैं| इससे संशन नहीं है| जो एक लाख जपकर उसका दशांश हवन करता है| लोग उसकी सेवा करते हैं, इसमें संशय नहीं है| जो आलस्य छोडकर पर्वत शिखर पर तीन लाख जप करें, वह जरा-मृत्यु से रहित होकर सदैव पच्चीस वर्ष का बना रहता है| वह आकाश में संचरण करने वाला कामरूप सदैव विजयी होता है|
भूमिशयन और ब्रह्मचर्य का पालन करके जो पांच लाख जप करें, वह जरा-मृत्यु से रहित होकर सदैव बीस वर्ष बना रह्ता है| कल्पान्त आयु प्राप्त करके विमान में सवार होता है| नन्दन आदि वनों में दिव्यक्न्याओं के साथ रमण करता है| इसी शरीर से साक्षात काम्देव के समान कांतिमान वनकर अव्याहत आज्ञा वाला अक्षयकाल तक प्रसन्न रहता है| हे नाथ! अधिक क्या कहें यह विध्या सर्वसिद्धि देने वाली है, जो निरन्तर होकर इस उत्तम मन्त्र को जप करें| इसी शरीर से दिव्य भोगों को प्राप्त करके निःसंदेह जीवनमुक्त हो जाता है| यह सत्य ही कहता हूं| जो नियमधारी अट्टाईस बार नियत इसका जप करें, वह इस पृथ्वी पर सभी दुःख सागर को पार कर लेता है| सभी शत्रुओं को जीतकर स्थिर परालक्ष्मी को प्राप्त करता है| साथ ही दीर्घायु आरोग्य श्रेष्ट पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है| जनवश्य, राजवश्य, नारीवश्य तथा वाकसिद्धि और सब कामों को यहां प्राप्त करता है, इसमें संशय नहीं| नियमपूर्वक 108 बार नित्य जप करें तो दीर्घायुष्य आरोग्य तथा धन-धान्य के समूह को प्राप्त करता है| अचल पुत्र-पौत्रादि निर्मल सौभाग्य को प्राप्त कर सर्पों को गरुड की भांति सभी शत्रुओं को जीतकर – मह्ती सिद्धि को प्राप्त करता है सर्वत्र कुशलता प्राप्त करता है| इसी शरीर से तीन वर्ष के अनन्तर – घटिका से पादुका अष्ट सिद्धियों का नायक होता है| उसे जैसी द्रव्य की अपेक्षा होती है, उसी समय उतनी निधि-सिद्धि प्राप्त हो जाती है| देखकर ही नारी और दुर्लभ राज्-कन्याओं को आकर्षित करता है| सातों व्दीपों के अधिपति इसके सेवक बन जाता है| स्थावर जंगम कृत्रिम और विष भी इसके हाथ के स्पर्शमात्र से शीघ्र विनिष्ट हो जाते हैं| चिरायुष्य प्राप्त करके दुर्लभ भोगों को प्राप्त करता है| ब्रह्मराक्षस, वेताल, भूत, प्रेत-पिशाच इसको देखकर दूर हो जाते हैं| इसमें तर्क करना ठीक नहीं है| अधिक कहने से क्या! इस मोह-माया से त्रस्त कलियुग में निश्चित ही वह जीवनमुक्त होता है| यही परम धर्म है| यही महाविध्या है| यही फल भी है| सभी साधनों में श्रीगुरु की कृपा है तो सभी सिद्धि हो नहीं तो सभी निष्फल होवे| जिसकी गुरु में दृढ भक्ति है, वह कृतकृत्य है| गुरु के अभाव में गुरुपत्नी को सेवा से संतुष्ट करें, अन्यथा सैकडों रूप पुरश्चर्या के व्दारा भी सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती है|
इस प्रकार श्रीपराशरसंहिता के पराशर मैत्रेय संवाद प्रकरण में पंचमुख हनुमद मन्त्रोव्दार कथन नामक तृतीय पटल समाप्त हुआ |
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