श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
श्री पराशरसंहिता – सोमदत्तचरित नीलकृतहनुमतस्त्रोत्रम् – चतुर्थपटलः
औं जय हो जय हो! श्री आंजनेय|
हे केसरी के प्रिय पुत्र! हे वायुकुमार|
हे देवपुत्र! हे पार्वती गर्भ से उत्पन्न|
श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
श्री पराशरसंहिता – सोमदत्तचरित नीलकृतहनुमतस्त्रोत्रम् – चतुर्थपटलः
औं जय हो जय हो! श्री आंजनेय|
हे केसरी के प्रिय पुत्र! हे वायुकुमार|
हे देवपुत्र! हे पार्वती गर्भ से उत्पन्न|
श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
हनुमन्म्ंत्रोध्धारणम् (व्दितीयपटलः)
श्री पराशर कहते हैं –
मन्त्रोव्दार को मैं कहता हूं| एकाग्र चित्त से श्रवन करें| जिसके विशिष्ट ज्ञान मात्र से मनुष्य सदैव विजयी होता है|
आदि मे ऊं का उच्चारण करके हरि मर्कट शब्द के बाद मर्कटाय एवं स्वआ का उच्चारण करें| (ऊं हरिमर्क़ट मर्कटाय स्वाहा)