श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
श्री पराशरसंहिता – सोमदत्तचरित नीलकृतहनुमतस्त्रोत्रम् – चतुर्थपटलः
औं जय हो जय हो! श्री आंजनेय|
हे केसरी के प्रिय पुत्र! हे वायुकुमार|
हे देवपुत्र! हे पार्वती गर्भ से उत्पन्न|
श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
श्री पराशरसंहिता – सोमदत्तचरित नीलकृतहनुमतस्त्रोत्रम् – चतुर्थपटलः
औं जय हो जय हो! श्री आंजनेय|
हे केसरी के प्रिय पुत्र! हे वायुकुमार|
हे देवपुत्र! हे पार्वती गर्भ से उत्पन्न|
श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
श्री पराशरसंहिता – काम्यसाधनम् – तृतीयपटलः – भाग – २
अपने पुत्र को आहत देखकर वायुदेवता ने कुपित होकर वायु संचार को रोक दिया, इससे संपूर्ण जगत मृतप्राय हो गया| तब ब्रह्मा, विष्णु सहित स्वर्गाधिप इन्द्राद्रि देवताओं ने जाकर हजारों वरदान दिया, यह वही वायुनन्दन हैं| महावीर सभी कामनाओं से परिपूर्ण हैं अतः अमावास्या को अंजनीनन्दन की पूजा करके| विजयी संसार के स्वामी के फल-पुष्प उपाहरादि से पूजित करके 108 बार जप करके घी से बारह आहुति करें| गुरु की यत्नपूर्वक पूजा करके गुरु-दक्षिणा देकर मन्त्र की सिद्दि को प्राप्त करता है| यहां औचित्यि का विचार नहीं करना चाहिए|
श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
काम्यसाधनम् – तृतीयपटलः – भाग – १
चक्राकार कमलकर्णिका पर आसीन, कालाग्नि के सदृश प्रभा वाले, चार भुजाओं वाले, विशाल मुख्वाले, चार चक्र धारण करने वाले हरि शीहनुमान् – ध्यान में लीन, त्रिनेत्रधारी, उग्र विग्रह वाले समस्त दोष और शोक को दूर करने वाले का धान करें | अब मैं उत्तम साधन वाले मन्त्र को कहता हूं, जिसके ज्ञानमात्र से मनुष्य साक्षात् सूर्य सदृश तेजस्वी होता है | सतयुग में एक हजार त्रेता में तीन हजार द्वापर में पांच हजार और कलियुग में दश ह्जार जप करें | यह मंत्र पर्वत शिखर नदी के तीर पर गुरु के सान्निध्य में, गोशाला में वृन्दावन में विशेश फल प्रदान करता है | इन्द्रियों को वश में करके गुरु की आज्ञा से इस मंत्र का जप करें | इसकी सिध्दि से सभी काम्य कर्म सिध्द हो जाता है |
श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
हनुमन्म्ंत्रोध्धारणम् (व्दितीयपटलः)
श्री पराशर कहते हैं –
मन्त्रोव्दार को मैं कहता हूं| एकाग्र चित्त से श्रवन करें| जिसके विशिष्ट ज्ञान मात्र से मनुष्य सदैव विजयी होता है|
आदि मे ऊं का उच्चारण करके हरि मर्कट शब्द के बाद मर्कटाय एवं स्वआ का उच्चारण करें| (ऊं हरिमर्क़ट मर्कटाय स्वाहा)
श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
प्रथमपटलः
श्रीलक्ष्मणादि भाईयों के साथ रत्न सिंहासन पर विराजित श्रीजानकीपति राम को प्रणाम करता हूं | एक बार सुखासन में विराजमान निष्पात तपोमूर्ति पराशर महामुनि से मैत्रेय ने पूछा | हे भगवान योगियों में श्रेष्ठ महामति पराशर! मैं कुछ जानना चाहता हूं, अतः आप मुझ पर कृपा करें | मोहमाया से आच्छन्न आथर्म, असत्य से युक्त दारिद्रय व्याधि से पीडित घोर कलियुग आ चुका है | उस घोर कलियुग में पूर्वजन्म के कर्मवश जो मनुष्य दुःखी हैं, वह अपने कल्यान करने हेतु ख्या उपाय करें | उन दुःख संतप्तों के लिये दयलुओं को ख्या करना चाहिये! राजा जन दस्युकर्म में प्रवृत हुये हैं और साधुजन विपत्तियों से घिरे हैं |
श्री राम जय राम जय जय राम
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम् श्रीराम राम भरताग्रज राम राम |
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम् श्रीराम राम शरनं भव राम राम ||
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे |
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ||
श्री हनुमते नमः
श्री राम जय राम जय जय राम
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम् श्रीराम राम भरताग्रज राम राम |
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम् श्रीराम राम शरनं भव राम राम ||
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे |
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ||
श्री हनुमते नमः
प्रस्तावना
श्री राम जय राम जय जय राम
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम् श्रीराम राम भरताग्रज राम राम |
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम् श्रीराम राम शरनं भव राम राम ||
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे |
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ||
श्री हनुमते नमः
प्रकाशकीय