श्री परशरसंहिता – श्री आंजनेयचरितम
प्रथमपटलः
श्रीलक्ष्मणादि भाईयों के साथ रत्न सिंहासन पर विराजित श्रीजानकीपति राम को प्रणाम करता हूं | एक बार सुखासन में विराजमान निष्पात तपोमूर्ति पराशर महामुनि से मैत्रेय ने पूछा | हे भगवान योगियों में श्रेष्ठ महामति पराशर! मैं कुछ जानना चाहता हूं, अतः आप मुझ पर कृपा करें | मोहमाया से आच्छन्न आथर्म, असत्य से युक्त दारिद्रय व्याधि से पीडित घोर कलियुग आ चुका है | उस घोर कलियुग में पूर्वजन्म के कर्मवश जो मनुष्य दुःखी हैं, वह अपने कल्यान करने हेतु ख्या उपाय करें | उन दुःख संतप्तों के लिये दयलुओं को ख्या करना चाहिये! राजा जन दस्युकर्म में प्रवृत हुये हैं और साधुजन विपत्तियों से घिरे हैं |